बिहार में सभी पार्टियां वोटरों को लुभाने के लिए नए-नए हथकंडे अपना रही हैं. इस बीच एनडीए भी सियासी बाजी को अपने नाम करने की हर संभल कोशिश में जुट गई है. बिहार की राजनीति हमेशा से अलग रही है. यहां की राजनीति में जाति का गणित काफी अहम है और एक कड़वी सच्चाई है कि चुनाव के अंतिम दिन विकास पर जाति का समीकरण भारी पड़ता है. यही वजह है कि एनडीए के चार घटक दलों ने बिहार के जातीय समीकरण को ध्यान में रखते हुए अपने-अपने उम्मीदवारों के नाम का ऐलान किया है.
इस बार जेडीयू ने 115 सीटों में से सबसे अधिक 67 प्रत्याशी पिछड़ा-अति पिछड़ा वर्ग से उतारे हैं. पिछड़ा वर्ग से नीतीश ने 40 प्रत्याशी उतारे हैं, जिनमें सबसे ज्यादा 19 यादव, 12 कुर्मी और तीन वैश्य समुदाय के लोगों को टिकट दिया है. वहीं, अति पिछड़ा समुदाय से 27 प्रत्याशी उतारे हैं, जिनमें 8 धानुक और 15 कुशवाहा शामिल हैं. इस तरह से नीतीश कुमार ने अपने कोइरी और कुर्मी मूल वोटबैंक को मजबूती से जोड़े रखने का दांव चला है.
एक और बीजेपी ने अपने कोर वोटबैंक अगड़ों पर खास फोकस रखा तो जेडीयू ने मूल वोटबैंक पिछड़ा और अतिपिछड़ा को साधकर रखने का दांव चला है. इस तरह से एनडीए ने बिहार की सियासी जंग में महागठबंधन को मात देकर सत्ता को बरकरार रखने की रणनीति अपनाई है.