दरभंगा शहर समेत पूरे मिथिला में जन स्वास्थ्य को लेकर यहां के तत्कालीन महाराज काफी चतित थे। इस चिंता के कारण महाराज रामेश्वर सिंह ने जब राजधानी पटना में संचालित हो रहे टेंपल मेडिकल स्कूल को 1945 में दरभंगा शिफ्ट कराया, तो इसके लिए उन्हें तत्कालीन अंग्रेजी सरकार के खजाने में निर्धारित राशि जमा करानी पड़ी थी।आपको बतादें कि महाराज की यह पहल इतनी बेहतरीन रही कि इसे देखने के लिए अंग्रेजी सरकार के लोग तक आते थे। इस प्रयास की बात प्रिस ऑफ वेल्स तक पहुंची और वो यहां स्कूल को देखने आए। आठवें किग एडवर्ड जब यहां आए तो उन्होंने महाराज की पहल की सराहना की। उनकी दानशीलता की भी बात की।
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महाराज की जिद्द ने दरभंगा को दिया मेडिकल कॉलेज
इतिहास के जानकार बताते हैं कि टेंपल मेडिकल स्कूल पटना से मुजफ्फरपुर जाना था। लेकिन, जैसे पटना का टेंपल मेडिकल स्कूल अपग्रेड हुआ और पुराने के शिफ्ट करने की बात चली तो महाराज रामेश्वर सिंह अड़ गए। तमाम प्रक्रिया पूरी की और 1925 में लहेरियासराय के लोहिया चौक स्थित वर्तमान पुलिस अस्पताल में स्कूल खुल गया। इसके लिए प्रिस ऑफ वेल्स से बात कर 25 हजार राशि अंग्रेजी सरकार के खजाने में दिया। इसी के साथ दरभंगा में स्वास्थ्य सेवाओं की बेहतरी की नींव पड़ गई। महाराज रामेश्वर के बाद उनके पुत्र महाराज कामेश्वर सिंह 1946 में स्कूल को दरभंगा मेडिकल कॉलेज बनवा दिया। इसके बाद 1953 में एमसीआइ की टीम ने निरीक्षण किया।डीएमसी में नही लगी संस्थापक की मूर्ति- लंबे समय से इस बात की कवायद चल रही है कि दरभंगा मेडिकल कॉलेज में इसके संस्थापक की महाराज रामेश्वर सिंह की प्रतिमा स्थापित की जाए। लेकिन, वक्त के साथ विकास की राह पर चल पड़े डीएमसीएच प्रशासन को इस बात से तनिक भी मोह नहीं है कि महाराज की प्रतिमा को लगा दिया जाए। स्थानीय लोग बताते हैं कि जिस तरह से महाराज ने अस्पताल दिया। ठीक उसी तरह से उनसे जुड़ी स्मृतियों को यहां संजोया जाना चाहिए था। लेकिन, यह अबतक नहीं हो सका है। न तो महाराज की प्रतिमा यहां लगी है। नहीं बनकर तैयार उनकी प्रतिमा का रख-रखाव ही ठीक तरीके हो सका है। –